देवउठनी एकादशी 2020:Devouthani Ekadashi 2020:khatushyamji live aarti darshan:shyam baba birthday
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Title : देवउठनी एकादशी 2020:Devouthani Ekadashi 2020:khatushyamji live aarti darshan:shyam baba birthday
Published By: Khatu shyam ji Temple live darshan
Date: 2020-11-25 14:54:54
Category: #Shyam Aarti
Label: Youtube
Video Duration : 00:05:41
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Dev Uthani Ekadashi 2020 Date Time Dev Uthani Ekadashi Puja Ka Subh Muhurat- साल 2020 में कब है देवउठनी एकादशी
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानि देव उत्थान एकादशी पर भगवान विष्णु की पूरे विधि विधान से पूजा की जाती है, इस एकादशी को लोग देवउठनी या देवोत्थानी एकादशी (Dev Uthani Ekadashi 2020) के नाम से जाना जाता हैं। मान्यता है कि क्षीर सागर में चार महीने की योग निद्रा के बाद भगवान विष्णु इस दिन उठते हैं। आज हम आपको बताएंगे कि साल 2020 में देवउठनी एकादशी कब है, कैसे हुई देवउठनी एकादशी पर्व की शुरुआत और क्या है पूजा की विधि और देवउठनी एकादशी (Dev Uthani Ekadashi 2020) का शुभ मुहूर्त क्या रहेगा।
धार्मिक मान्यता अनुसार भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु दैत्य संखासुर को मारा था। दैत्य और भगवान विष्ण के बीच युद्ध लम्बे समय तक चलता रहा। युद्ध समाप्त होने के बाद भगवान विष्णु बहुत ही थक गए थे और क्षीर सागर में आकर सो गए और कार्तिक की शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागे, तब देवताओं द्वारा भगवान विष्णु का पूजन किया गया। जैसे कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की इस एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी या देवउठनी एकादशी भी कहा जाता है।
देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह की परम्परा है। इस दिन भगवान शालिग्राम के साथ तुलसी जी का विवाह होता है, इसके पीछे एक पौराणिक कथा है। जिसमे जालंधर को हराने के लिए भगवान विष्णु ने वृंदा नामक विष्णु भक्ति के साथ छल किया था। इसके बाद वृंदा ने विष्णु जी को श्राप देकर पत्थर बना दिया, लेकिन मां लक्ष्मी की विनती के बाद उन्हें सही करके सती हो गए थे। उनकी राख से तुलसी के पौधे का जन्म हुआ और उसके साथ साथ शालिग्राम के विवाह का चल शुरू हो गया।
साल 2020 में देवउठनी एकादशी (Dev Uthani Ekadashi 2020) कब है? ऐसे समझें…
देवउठनी एकादशी 2020 व्रत शुभ मुहूर्त…
एकादशी तिथि का प्रारंभ होगा – 25 नवंबर 2020 बुधवार सुबह 2 बजकर 42 मिनट से
देवउठनी एकादशी पारणा मुहूर्त : 13:11:37 से 15:17:52 तक 26, नवंबर को
अवधि : 2 घंटे 6 मिनट
हरि वासर समाप्त होने का समय : 11:51:15 पर 26, नवंबर को
एकादशी तिथि की समाप्ति होगी – 26 नवंबर 2020 गुरुवार सुबह 5 बजकर 10 मिनट पर
साल 2020 में देवउठनी एकादशी 25 नवंबर 2020 बुधवार को को मनाई जाएगी।
हिंदू पंचांग के अनुसार एक साल में कुल 24 एकादशी पड़ती हैं, जबकि एक माह में 2 एकादशी तिथियां होती हैं। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहते हैं। मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार माह के लिए सो जाते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं।
दरअसल आषाढ़ महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी से कार्तिक महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी तक भगवान विष्णु योग निद्रा में रहते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन चतुर्मास का अंत हो जाता है और शादी-विवाह के काज शुरू हो जाते हैं. इन चार महीनों के दौरान ही दीवाली मनाई जाती है।
पाताल में रहते हैं भगवान विष्णु…
वामन पुराण के अनुसार, भगवान विष्णु ने वामन अवतार में राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी थी। भगवान ने पहले पग में पूरी पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को ढक लिया। अगले पग में स्वर्ग लोक ले लिया। तीसरा पग बलि ने अपने आप को समर्पित करते हुए सिर पर रखने को कहा। इस तरह दान से प्रसन्न होकर भगवान ने बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया और वर मांगने को कहा।
बलि ने वर मांगते हुए कहा कि भगवान आप मेरे महल में निवास करें। तब भगवान ने बलि की भक्ति देखते हुए चार महीने तक उसके महल में रहने का वरदान दिया। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी से देवप्रबोधिनी एकादशी तक पाताल में बलि के महल में निवास करते हैं।
इन महीनों में भगवान विष्णु के बिना ही मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है, लेकिन देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु को जगाने के बाद देवी देवताओं, भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करके देव दीवाली मनाते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से पूरे परिवार पर भगवान की विशेष कृपा बनी रहती है। इसके साथ ही मां लक्ष्मी घर पर धन सम्पदा और वैभव की वर्षा करती हैं।
ऐसे करें व्रत-पूजन :-
: देवउठनी एकादशी के दिन व्रत करने वाली महिलाएं प्रातःकाल में स्नानादि से निवृत्त होकर आंगन में चौक बनाएं।
: इसके बाद भगवान विष्णु के चरणों को कलात्मक रूप से अंकित करें।
: फिर दिन की तेज धूप में विष्णु के चरणों को ढंक दें।
: देवउठनी एकादशी को रात्रि के समय सुभाषित स्त्रोत पाठ, भगवत कथा और पुराणादि का श्रवण और भजन आदि का गायन करें।
: घंटा, शंख, मृदंग, नगाड़े और वीणा बजाएं।
: विविध प्रकार के खेल-कूद, लीला और नाच आदि के साथ इस मंत्र का उच्चारण करते हुए भगवान को जगाएं : –
‘उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥’
‘उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥’
‘शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।’
इसके बाद विधिवत पूजा करें।
–
‘यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन।
तेह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्तिदेवाः॥’
इसके बाद इस मंत्र से प्रार्थना करें : –
‘इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता।
त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थ शेषशायिना॥’
इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो।
न्यूनं सम्पूर्णतां यातु त्वत्प्रसादाज्जनार्दन॥’
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